प्रत्येक व्यक्ति भक्ति का अधिकारी है! Everyone is entitled to Devotion!

पुरुष नपुंसक नारि नर जीव चराचर कोइ।
सर्व भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ॥
~ रामायण

प्रत्येक जीव, जो छल कपट त्याग कर, निष्कपट भाव से भगवान् की भक्ति करता है वह जीव भगवान् को परम प्रिय होता है।

Every living being, who does devotion to God sincerely, leaving deceit, that living being is very dear to God.

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।।
~ भगवद्गीता 9.32

वे सब जो मेरी शरण ग्रहण करते हैं भले ही वे जिस कुल, लिंग, जाति के हों और जो समाज से तिरस्कृत ही क्यों न हों, वे भगवद्ग प्रेम के परम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।

All those who take refuge in Me, irrespective of their clan, gender, caste and even if they are despised by the society, attain the ultimate goal of Divine Love.

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥
~ श्रीमद्भगवद्गीता 9.30

यदि महापापी भी मेरी अनन्य भक्ति के साथ मेरी उपासना में लीन रहते हैं तब उन्हें साधु मानना चाहिए क्योंकि वे अपने संकल्प में दृढ़ रहते हैं।

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति॥
~ श्रीमद्भगवद्गीता 9.31

वे शीघ्र धार्मात्मा बन जाते हैं और चिरस्थायी शांति पाते हैं। हे कुन्ती पुत्र! निडर हो कर यह घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी पतन नहीं होता।

If even the greatest of sinners remain engrossed in worshiping Me with undivided devotion, then they should be considered sages because they remain firm in their resolution.

भगतिवंत अति नीचउ प्रानी।
मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी॥
~ रामचरितमानस

जन अवगुन प्रभु मान न काऊ,
दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ।
~ रामचरितमानस

उलटा नाम जपत जग जाना।
बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।।
~ रामचरितमानस

जिसके इतने पाप हैं जो भगवान का नाम भी न ले पा रहा हो, अगर वो भगवान पर आश्रित है, तो उसका भी कल्याण निश्चित है!

The one who has so many sins that he is not able to even take the name of God, if he is dependent on God, then his welfare is also certain.