मन कैसे शांत हो? क्या परमानन्द पाना कठिन है? भगवान जल्दी कैसे मिलें?

सबसे सुगम, सरल और सर्वोत्तम साधन – भगवद्ग ज्ञान, प्रेम और शरणागति।

संसार का सुख मायीक है, जड़, नश्वर, क्षणिक, घटमान, दुख मिश्रित एवं अशांति का मूल है। परम सुख परमात्मिक है, दिव्य, शास्वत, प्रति क्षण वर्धमान, नित्य नवीन एवं अनंत है।

संसार का सुख पाना कठिन है, अगर कोई अरबपति बनना चाहे, प्रधानमन्त्री बनना चाहे, हर कोई नहीं कर पाता और पा भी ले तो रख नहीं पाता परंतु परम सुख पाना सरल है, हर कोई पा सकता है और सदा के लिय।

कैसे? जैसे हम जब बीमार होते हैं, बुखार में, दुख में होते हैं तो स्वाभाविक रूप से अपनी माँ को याद करते हैं, अनायास ही मुख से माँ की पुकार होती है, माँ के प्यार की, दुलार की चाह होती है।

वैसे ही जब हम अपनी असली माँ को सच्चे हृदय से “शरणागत” होके पुकारते हैं तो भगवान की कृपा हमें अपने आचल में भर लेती है, अशांत चित में शांति, मन में निर्भयता, निर्लिप्तता और निशोकता आ जाती है, बिना किय ज्ञान, वैराग्य और प्रेम प्रस्फुटित होने लगाता है, मन आनंद में डूबने लगता है।

असली आनंद पाने के लिए केवल चाह चाहिये, प्रबल चाह, भगवान चाह से मिलते हैं, भाव से मिलते हैं, बिना किए मिलते हैं, निर्बल को मिलते हैं, शरणागत को मिलते हैं, प्रेम से मिलते हैं, और प्रेम करना सब कोई जानता है।

किरन का संबंध सूर्य से है, संसार और शरीर के मोह रूपी अंधकार से नहीं। हम पुकारे कि “हे प्रभु, हम आपके हैं पर करने पर भी आपसे प्रेम नहीं होता, ध्यान नहीं होता, मन अज्ञान से भरा है, अशांत हैं, अनंत जन्मों की बिगड़ी मेरे बनाय नहीं बनेगी, अब बस आपका ही सहारा है!

केवल संसार में ड्यूटी करके भगवान की कृपा चाहने से सबकुछ मिल जाता है। इससे सरल कुछ नहीं, केवल भगवान की कृपा पर विश्वास हो, उनसे अपनापन हो, ना हो तो उनसे प्राथना करें, आप केवल उनके हो यह समझ बैठ जाएगी। तब अनन्त जन्मों की बिगड़ी कुछ समय में बन जाएगी।

और अगर हम सोचे यह बहुत कठिन है तो हमको अपना बल है, सर्व समर्थ भगवान को हम अपना नहीं मानते, हम को लगता है करने से कृपा मिलती है, तो फिर जब हम कर कर के थक जाएगें, मर मर के मर जाएगें, तब कभी किसी जन्म में निर्बल होके भगवान को पुकारेंगे।

तो हम अभी क्यों ना पुकारें, उन्हें अपना मान के? बच्चा माँ की गोदी के लिए सदा अधिकारी है, माँ उसके गुण अवगुण नहीं देखती, बस उसे माँ की प्रबल चाह हो तो भगवान तुरंत गोदी में उठा लेंगे, अपना सब कुछ दे देंगे।

बिगरी जन्म अनेक की अबहीं सुधरे आज। होहि राम कौ नाम भजु तुलसी तजि कुसमाज ।। (तुलसीदास, दोहावली २२)