राम कौन हैं?

राम तत्व पर विचार करना है। राम कौन हैं? पहले वेदों में चलिये। राम शब्द का अर्थ स्वयं वेद कर रहा है।

रमंते योगिनोनन्ते नित्यानंद चिदात्मनि।
इति राम पदेनाऽसौ परब्रह्मभिधीयते॥
[राम तापनी.]

जिसमें योगी लोग आत्माराम पूर्णकाम परमनिष्काम परमहंस लोग रमण करते हैं, वे परब्रह्म श्री राम हैं। फिर वेद कहता है।

भद्रो भद्रया सचमान आगात्। स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात् सुप्रेकेतैर्द्युभिरग्निर्वितिष्ठन् रुशद्भिर्वर्णैरभिराम- मस्थात्। अर्वाची सुभगे भवसीते। वंदामहे त्वा यथानः सुभगा-ससि यथानः सुफलाससि।
[ऋग्वेद]

ऋग्वेद कह रहा है। फिर वेद कहता है।

यो ह वै श्री राम चन्द्रः स भगवान्।
[ राम तापनी.]

ये जो अयोध्या के श्री राम चन्द्र हैं ये भगवान् हैं। भगवान्। ये भगवान् क्या होता है।

ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यश: श्रियः।
ज्ञानवैराग्य योश्चैव षण्णां भग इतीरणा॥

अनंत मात्रा के षडैश्वर्य जिसमें हों उसको भगवान् कहते हैं। उस भगवान् के तीन स्वरूप होते हैं। भगवान् तीन नहीं होते। भगवान् का अभिन्न तीन स्वरूप।

वदंति तत्तत्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते॥
[भागवत्]

वेदव्यास कह रहे हैं कि भगवान् का एक रूप होता है परमात्मा, एक रूप होता है ब्रह्म। ये तीन रूप होते हैं, जिसमें ब्रह्म सबसे नीचे है। निराकार, निर्गुण निर्विशेष ब्रह्म। जिसके उपासक ज्ञानी लोग होते हैं। उस ब्रह्म में शक्तियाँ तो सब हैं, लेकिन प्रकट नहीं होती। सत्ता मात्र है वो। शंकराचार्य आदि ने उसका डिटेल में निरूपण किया है कि-

उदासीन स्तब्धः सततमगुणः संग रहितः।

वो उदासीन है ब्रह्म, कुछ नहीं करता।

अदृष्टमव्यवहार्यमग्राह्यमलक्षणमचिन्त्यमव्यपदेश्यमेकात्म प्रत्यय सारं।

ब्रह्म है। सब जगह ‘आ’ लगा दो। अदृष्ट है वह दिखायी नहीं पड़ता, सुनाई नहीं पड़ता, सूंघने में नहीं आता, रस लेने में नहीं आता, स्पर्श करने में नहीं आता, सोचने में नहीं आता, निश्चय करने में नहीं आता, ऐसा ब्रह्म बेकार है। बिचारा, हमारे किस काम का। इसके आगे दूसरा स्वरूप है परमात्मा का। इसमें आकार है और ‘भग’ का सब ऐश्वर्य है। शक्तियां भी प्रकट होती हैं, लेकिन पूरी-पूरी नहीं। और तीसरा है भगवान् शब्द, जिसके ये दोनों रूप हैं वह भगवान्। सगुण साकार भगवान् राम कृष्ण। इनमें सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकट्य होता है, विकास होता है। ये सर्वदृष्टा, सर्वनियन्ता, सर्वसाक्षी, सर्वसुहृत, सर्वेश्वर, सर्वशक्तिमान हैं। अनंत गुण हैं। भले ही कोई पृथ्वी के रज कणों को गिन ले किन्तु राघवेन्द्र सरकार के गुणों को नहीं गिन सकता, अनंत।

यो वा अनंतस्य गुणानन्तान्।
[भागवत्]

अगर कोई कहे मैं गिन लूंगा, तो उसका ढीला है, आगरा भेज दो। नहीं गिन सकता। भगवान् राम की कोई चीज सीमित नहीं। उनके नाम अनंत, रूप अनंत, गुण अनंत, लीला अनंत, धाम अनंत, जन अनंत, गुण अनंत, सब अनंत-अनंत मात्रा का है, और ऐसा अनंत कि अनंत माइनस अनंत बराबर अनंत।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।

पूर्ण से पूर्ण निकालो फिर भी पूर्ण बचे, ऐसे पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रह्म राम हैं। तो वेद कहता है- स भगवान्। फिर कहता है वेद-

रामत्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रहः।

हे राम तुम परमात्मा हो। यानी भगवान् जो है वो परमात्मा भी है, ब्रह्म भी है। उसी के दोनों रूप हैं। जैसे-

चयस्त्विषामित्यवधारितं पुरा, ततः शरीरीतिविभा विताकृतिम्।
विभुर्विभक्तावयवं पुमानिति- क्रमादमुन्नारद इत्यबोधि सः॥

जब नारद जी भगवान् श्री कृष्ण के सामने आ रहे थे बैकुंठ से, तो पहले जनता ने देखा कोई लाइट आ रही है नीचे को, प्रकाश पुंज, और समीप में आये तो लोगों ने देखा कि इसमें कोई शक्ल भी मनुष्य की प्रकाश के साथ- साथ, और जब नीचे पृथ्वी के पास आ गये, अरे ये तो नारद जी हैं, अच्छा अच्छा-अच्छा। ऐसे ही ब्रह्म का स्वरूप लाइट का, परमात्मा का स्वरूप बीच वाला और भगवान् जो नारद पृथ्वी पर आ गये वो। जिसमें सब कुछ प्रत्यक्ष है, जैसे हम आपके सामने बैठे हैं। ऐसे हमारे राम कृष्ण हमारे सामने बैठते हैं, बोलते हैं, सब इन्द्रियों से हम उनको ग्रहण करते हैं। जैसे संसार को ग्रहण कर रहे हैं, इस प्रकार। तो वेद कहता है।

राम त्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रहः।

और एक वैलक्षण्य है भगवान् राम के शरीर में, कि वो स्वयं सच्चिदानन्द ब्रह्म हैं, और उनका शरीर भी वही है सच्चिदानन्द ब्रह्म। देखिये हम लोगों के एक तो शरीर है, एक हम हैं आत्मा ऐसे ही देवताओं का भी है, सबका ऐसे ही है अनंत कोटि ब्रह्माण्ड में। एक देह एक देही। लेकिन भगवान् राम का देह और देही दोनों एक हैं।

देह देहि भिदा चैवनेश्वरे विद्यते क्वचित्॥

ये भगवान् में नहीं होता। वो सच्चिदानन्द ब्रह्म शरीर और
आनंदमात्र करपाद मुखोदरादि:।

सब आनंद ब्रह्म आनंद ब्रह्म। और कुछ है ही नहीं, ये देखने का है शरीर। हाथ, पैर सब दिखायी पड़ेंगे आपको लेकिन वो हाड़ माँस नहीं। वो प्राकृत नहीं। वो सच्चिदानंद विग्रह है। शरीर ही सच्चिदानंद है, और शरीरी भी सच्चिदानंद है। ऐसा उनका शरीर है इसलिये।

चिदानंद मय देह तुम्हारी विगत विकार जानि अधिकारी।
ब्रह्म सच्चिदानंद घन रघुनायक जहँ भूप।
सोइ सच्चिदानंद घन रामा।

देखिये एक शब्द जोड़ रहे हैं इसमें ‘घन’ ये क्या बलाय है। सच्चिदानंद हो गया पर्याप्त है। ‘घन’ और जोड़ दिया। देखिये ये जो निराकार ब्रह्म है इसका नाम है सत्, चित्, आनंद। सत् से परे चित्, चित् से परे आनंद। तो चाहे सच्चिदानंद कहो, चाहे चिदानंद कहो और चाहे खाली आनंद कहो। वेद में कहा गया।

आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनंदाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। आनन्देन जातानि जीवंति। आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशंति।

आनंद ही ब्रह्म है। ब्रह्म में आनंद है ऐसा नहीं। आनंद ही ब्रह्म है।

आनंद एवाधस्तात् आनंद उपरिष्टात् आनंद: पुरस्तात् आनंदः पश्चात् आनंद उत्तरतः आनंद दक्षिणत: आनंद एवेद्ं सर्वं।

जिसके ऊपर आनंद, नीचे आनंद, दक्षिण आनंद, उत्तर आनंद, पूर्व आनंद, पश्चिम आनंद, अन्दर आनंद, बाहर आनंद, आनंद ही आनंद लबालब भरा है वह आनंद। ब्रह्म उसी का नाम, उसी का नाम राम। आनंद निराकार ब्रह्म, और निराकार ब्रह्म का भी सार तत्व, वो आनंद घन है अथवा आनंद कन्द है। ये दो शब्द का प्रयोग हुआ है शास्त्रों में राम कृष्ण के लिये। आनंद कंद या आनंद घन। तुलसीदास जी घन का प्रयोग कर रहे हैं। हमारे राम आनंद ही नही हैं। आनंद घन हैं। आनंद का भी सारभूत तत्व निकाल कर वो शरीर बना है।

राम एव परं तत्वम्।
[राम रहस्योपनिषदत्]

तो वेदों में सर्वत्र राम तत्व का निरूपण किया गया है। राम शब्द का अर्थ भी हुआ है। मैंने एक बताया आपको।

रमंते योगिनोनन्ते।

दूसरा अर्थ भी है।

रा शब्दो विश्व वचनो मश्चापीश्वर वाचकः।
विश्वानामीश्वरो यो हि तेन रामः प्रकीर्तितः।।

‘रा’ माने संसार, विश्व और ‘म’ माने ईश्वर। शासन करने वाला। सम्पूर्ण विश्व का शासन करने वाला, वो राम। और कोई शासन नहीं करता, सब उनसे शास्य हैं। सब उनसे नियम्य हैं। वो नियामक है, शासक है। तीन काम करते हैं राम। ब्रह्मा जी ने कहा वाल्मीकि रामायण में।

कर्ता सर्वस्य लोकस्य।

अनंत कोटि ब्रह्माण्ड को राम प्रकट करते हैं। प्रकट करते हैं? हाँ। और कोई नहीं कर सकता? न। तो किसी महापुरुष को ये शक्ति भगवान् ने नहीं दी, और सब दे दिया, सत्य, ज्ञान, आनंद।

अपहृत पाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोकोऽविजिघत्सोऽपिपासः सत्यकामः सत्यसंकल्पः।

ये आठ गुण हैं । वेद के अनुसार ये सब दे देते हैं भक्त को, लेकिन सृष्टि करने की बात अपने हाथ में रखते हैं।

जगद् व्यापार वर्जम्।

वेदान्त का सूत्र कहता है। सृष्टि का कार्य भगवान् स्वयं करते हैं। इसलिए जो ब्रह्म की परिभाषा किया वेद ने, तो लिखा-

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते। येन जातानि जीवंति यत्प्रयन्त्यभिसंविशंति। तद्विजिज्ञासस्व।

जिससे संसार उत्पन्न हो जिससे रक्षित हो, जिसमें लय हो। ये तीन काम जो कोई करे उसका नाम ब्रह्म राम। ये काम और कोई नहीं करता। महापुरुष लोग, दिव्यानंद, दिव्य प्रेम सब कुछ उनके पास है, लेकिन सृष्टि का काम भगवान स्वयं करते हैं।

भोग मात्र साम्य लिंगाच्च
[ ब्र. सू.]

ब्रह्मानन्द, प्रेमानंद, परमानंद, दिव्यानंद, अनिर्वचनीयानंद अपरिमेयानंद, अपौरुषेयानंद जो भगवान सम्बन्धी है वो देते हैं सब भक्तों को शरणागत को। सृष्टि का कार्य नहीं देते। इसलिये ब्रह्मा ने कहा-

कर्ता सर्वस्य लोकस्य।
अन्ते मध्ये तथा चाऽदौ।

इस संसार के प्रारम्भ में जो था, मध्य में जो है अन्त में जो रहेगा वो राम ब्रह्म, ये और कोई नहीं।

~ जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज