इतना सरल है भगवान को जानना, पाना!

माता-पिता की आत्मीयता बालक से स्वाभाविक होती है। जब बालक कुछ समझ नहीं पाता या कर नहीं पाता तो उनसे कहता है, उनकी शरण हो जाता है। तब वात्सल्य भाव से वह समझा देते हैं, कर देते हैं। ऐसे ही भगवान को जानने पाने के लिए भोले बालक की तरह, सरलता-दीनता-अपनेपन के भाव से, उनको बस सच्चे ह्रदय से कहना है। वह मिल जाएंगे।