अन्तर्यामी जो होता है वो हर एक महापुरुष होता है। जिसने भगवत्प्राप्ति की हो वो सब अन्तर्यामी हो जाते हैं और सर्वान्तर्यामी केवल भगवान् है। वो इसलिये कि सभी जीवों के अंतः करण में वह एक – एक रूप से रहता है। ऐसा नहीं कि अलग गोलोक में बैठकर सर्वान्तर्यामी है, ऐसा नहीं। हर एक जीव के अंतः करण में एक भगवान् का रूप सदा रहता है। स्वर्ग जाय, नरक जाय, मृत्यु लोक में जाय चाहे जहाँ रहे वो साथ रहता है हमेशा और वो सबके आइडियाज, पुराने जन्मों के कार्य का हिसाब सब करता है। धन्धा उसका यही है। वो सर्वान्तर्यामी है और सर्वव्यापक है और महापुरुष अन्तर्यामी है जिसके मन की बात जब जानना चाहे जान सकता है। लेकिन सदा नहीं जानता रहता। यह काम भगवान् का है क्योंकि वो कर्म फल देना है उनको, तो उनको हमेशा जानना पड़ेगा।
भगवान् सर्वव्यापक हैं और आत्मा शरीर व्यापक। ये जीवात्मा खाली एक शरीर में है और भगवान् जड़ चेतन सर्वत्र व्यापक है।
~ जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज