Humility is mother of all virtues & most dear to God. दीनता सभी सद्गुणों की जननी है और भगवान को सबसे प्रिय है।

Obedience, fear, reverence, patience, modesty, meekness, and peace all stem from humility. A person who is humble is able to obey everyone easily, is not irritated by anyone, lives in peace with others, and is kind to everyone. He does his duty, makes his full effort but consider the result as a will of God. He is totally dependent on God for everything & keeps no strength of himself. That’s why he receive divine #grace and protection.

आज्ञा पालन, भय, श्रद्धा, धैर्य, विनम्रता, नम्रता और शांति ये सभी दीनता से उत्पन्न होते हैं। जो व्यक्ति जितना दीन होता है वह उतना आसानी से सबकी आज्ञा मान लेता है, किसी से परेशान या चिढ़ता नहीं, दूसरों के साथ शांति से रहता है और सबके प्रति दयालु होता है। वह अपना कर्तव्य करता है, पूरा प्रयास करता है पर परिणाम को भगवद् इच्छा मानकर स्वीकार करता है। वह पूरी तरह से भगवद् आश्रित रहता है और खुद की कोई ताकत नहीं रखता। इसलिए वह ईश्वरीय #कृपा और रक्षा का पात्र होता है।

~ Saints Sayings संत वचन
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God works through people & situations! भगवान व्यक्तियों और परिस्थितियों के माध्यम से कार्य करते हैं!

Anyone who asks God for humility & grace should be aware of what they are asking for, that is to say, God sends someone to mistreat him or some difficulty to face. Adversity bring us closer to God.

जो कोई भी भगवान से दीनता और कृपा मांगता है, उसे पता होना चाहिए कि वे क्या मांग रहा है, यानी, भगवान किसी को उसके साथ दुर्व्यवहार करने या किसी कठिनाई का सामना करने के लिए भेजे। विपत्तियाँ हमें भगवान के करीब लाती हैं।

~ Saints Sayings
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Spiritual Practice is Necessary! साधना अनिवार्य है!

Seeing the intense spiritual practice (sadhna), God’s grace descends. When sadhna stops, grace also stops. If someone thinks that there is no God realization without grace, what’s the use of doing sadhna then keep sitting, it will never happen.

गहन साधना देखकर ईश्वर की कृपा होती है। जब साधना बंद हो जाती है तो कृपा भी बंद हो जाती है। यदि कोई यह सोचता है कि कृपा के बिना ईश्वर प्राप्ति नहीं होती तो साधना करने से क्या लाभ तो बैठे रहो, ऐसा कभी नहीं होगा।

~ Saints Sayings संत वचन

एक रुपय कमाना कठिन है, भगवान को पाना सरल है!

क्या बालक के गुण देखकर माँ दूध पिलाती है?
कम लायक बेटे को खाना नहीं देतीं, पानी नहीं देती?
एक रुपय कमाना कठिन है, भगवान को पाना सरल है!

बिगड़ी जन्म अनेक की अभी सुधरे आज,
होए राम को नाम भजु, तुलसी तजु कुसमाज।

My Lord, I am all things unholy! हे प्रभु, मैं सर्वप्रकार अपवित्र हूँ!

However Big a sinner he may be, his welfare is certain if he is completely dependent on the grace of God!

कितना ही बड़ा पापी क्यों ना हो, उसका कल्याण निश्चित है अगर वो प्रभु कृपा पर पूर्णता आश्रित है!

पाप किय अनंत मैंने, ह्रदय कठोर खल कामी,
आया शरण हार के, कृपा करो अब स्वामी।

My Lord, I have committed endless sins, my heart is hardened due to treachery and indulgence. I am lonely and lost, seeking your shelter. May you have mercy on me!

A God is No God who can be known. वो ईश्वर ईश्वर नहीं जिसे जाना जा सके।

A God that can be known by effort is no God. He can be known only by His Grace.

जिस ईश्वर को प्रयास से जाना जा सके, वह ईश्वर नहीं है। उसे केवल उसकी कृपा से ही जाना जा सकता है।

यह गुन साधन तें नहिं होई।
तुम्हरी कृपा पाव कोइ कोई॥ 
~ रामायण

Humble ourselves or life will do it for us. खुद झुक जाये नहीं तो जिंदगी झुका देगी।

Until we are tired, broken by our faults and sorrows, we do not understand our pitiable condition and do not feel humble before God. God love us immensely, His shelter is the only solution.

जब तक हम थक नहीं जाते, अपने दोषों और दुखों से टूट नहीं जाते, तब तक अपनी दयनीय स्थिति समझ में नहीं आती और ईश्वर के आगे दीनता नहीं आती। ईश्वर हमें बेहद प्रेम करता है, उसका आश्रय ही एक मात्र उपाय है।

इतना सरल है भगवान को जानना, पाना!

माता-पिता की आत्मीयता बालक से स्वाभाविक होती है। जब बालक कुछ समझ नहीं पाता या कर नहीं पाता तो उनसे कहता है, उनकी शरण हो जाता है। तब वात्सल्य भाव से वह समझा देते हैं, कर देते हैं। ऐसे ही भगवान को जानने पाने के लिए भोले बालक की तरह, सरलता-दीनता-अपनेपन के भाव से, उनको बस सच्चे ह्रदय से कहना है। वह मिल जाएंगे।

भगवान कैसे मिलें? क्या भगवान हमें प्रेम करते हैं? हमेशा के लिय दुख कैसे जाए? क्या भगवान साकार हैं? क्या उनका लोक है? इस संसार का क्या स्वरूप है?

भगवान केवल रोने से मिलते हैं.. प्रेम से मिलते हैं.. भक्ति से मिलते हैं.. केवल आँसू ही एक माध्यम हैं उन्हें बताने के लिए हम उनके बिना कुछ भी नहीं.. हम असहाय हैं.. अनाथ हैं.. अपराधी हैँ.. अनंत पाप किए बैठे हैं..  उनको ना जाना ना माना.. उनके प्रेम का अनादर किया..

“मो सम कौन कुटिल खल कामी। जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नमकहरामी॥” ( सूर सागर ~ संत सूरदास)

भगवान के लिय सच्चे आँसुओं में अनन्त बल है जो केवल निर्बल को प्राप्त है..आश्रित को प्राप्त है..प्रेमी को प्राप्त है.. व्याकुलता से भरा एक एक आँसू एटॉमिक बम है..

भगवान की कृपा के बिना ना मन शुद्ध होगा. ना ही दुख निवृत्ति होगी.. भगवद्ग प्राप्ति, परमानंद प्राप्ति, माया निवृत्ति की तो छोड़िए.. कोई लाख ध्यान कर ले ज्ञान कर ले.. बड़े बड़े ज्ञानी योगी हुए, हैं, होंगे.. हज़ारों वर्ष तपस्या की.. बड़ी बड़ी योगिक सिद्धियां मिल गई.. पर माया नहीं गई.. आत्मिक आनंद (मायीक सात्विक आनंद) को ही दिव्यानंद, परमानंद समझ लिया.. भगवान के शरणागत नहीं हुए.. भक्ति नहीं की.. फिर पतन हो गया… जीवन-मुक्त जड़भरत की यहि कहानी है .. फिर जब भक्ति की अगले जन्म में तो भगवान की कृपा से उद्धार हुआ.. इतिहास गवाह है.. शास्त्र प्रमाण हैं.. भरा पड़ा है… 

कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना। एक अधार राम गुन गाना॥ सब भरोस तजि जो भज रामहि। प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि॥ (रामायण)

हम संसार में भोग के लिए नहीं आए.. अगर हमने भगवान को ना जाना तो बहुत बड़ी हानि हो जाएगी.. चौरासी लाख योनि में जाने की तैयारी है.. जहां महा दुख है.. यह परिवार, धन दौलत, मान सम्मान कुछ साथ नहीं जाएगा.. मनुष्य जन्म अनमोल है..

“अवसर चुकीं फिरी चौरासी कर मींजत पछतात.. अरे मन अवसर बीतो जात”.. (प्रेम रस मदिरा ~ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)

भगवान हमसे अनंत प्रेम करते हैं, हम अनन्त काल से अंधकार में हैं, पर हमेशा रहें ऐसा जरूरी नहीं, हम भगवान को भूले हुए हैं, पर वो हमे नहीं भूले, वो हमे उनका सब कुछ देना चाहते हैं दिव्य-दिव्य, इस दुखमय मायीक संसार से निकालना चाहते हैं.. क्या नहीं करते भगवान हमारे लिए, निराकार रूप से सर्वव्यापक हैं, यह संसार बनाया, शरीर बनाया, हमारे हृदय में.. आत्मा में बैठें हैं, हमारे सारे कर्म नोट करते हैं, अच्छे बुरे कर्मों का फल देते हैं, सब व्यवस्था रखतें हैं, परमाणु परमाणु में बैठकर.. संसार का ऐसा स्वरूप बनाया कि हम दुख पाने पर जागें और सोचें कि क्या हम शरीर हैं? क्या इस संसार में सच्चा सुख है? हमारा दुख कैसे जाए? .. असली में हम कौन हैं, हमारा कौन हैं? आदि ..पर हम इतने संसार आसक्त हो गए कि लाख दुख पाने पर भी वहीं नाक रगड़तें हैं.. आनंद की भूख इतनी प्रबल है कि दुख पाने पर भी अनित्य, क्षणिक सुख में बार बार गिरते हैं..

भगवान असली में हैं, वो साकार हैं और निराकार भी, उनका शरीर दिव्य है, सच्चिदानंद विग्रह है, मैटीरियल नहीं.. तर्क से भी सर्वशक्तिमान भगवान क्या साकार नहीं हो सकते? साकार ही नहीं वो “नित्य” साकार हैं और निराकार का आधार हैं..

द्वे वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तं चैव अमूर्तं च । (बृहदारण्यकोपनिषत् २-३-१)

अर्थात्‌ साकार एवं निराकार भगवान के दो स्वरूप होते हैं।

चिदानन्दमय देह तुम्हारी, विगत विकार जान अधिकारी। (रामायण )

आपका देह दिव्यातिदिव्य है, चिन्मय-अविनाशी है, जिसके दर्शन दिव्य दृष्टि मिलने पर होते हैं।

उनके दिव्य लोक हैं उनका सब कुछ दिव्य है.. उनको प्राप्त करने पर जीव को भी दिव्य देह मिलती है (दिव्य भाव देह) और उनका लोक भी दिव्य है अपितु स्वयं बन गए हैं..

साकार भगवान के प्रेमानंद की एक बूंद पर अनंत ब्रह्मानंद (निराकार भगवान का आनंद) न्यौछावर हैं.. इतना बड़ा और रसमय हैं भगवान के साकार स्वरूप का आनंद.. इसलिए भगवान ने साकार संसार बनाया हैं (जो दिव्य लोक का विकृत प्रतिबिंब है) कि हम इस रहस्य को जाने.. यहा अपूर्णता है वहां पूर्णता है.. यहां का आनंद मायीक है, अनित्य है, क्षणिक है, दुख मिश्रित है.. भगवद्ग प्रेमानंद दिव्य है, अनंत है, नित्य है, प्रति पल वर्धमान है, नवीन है.. यह वेद सम्मत सिद्धांत है.. वेदों के मन्त्रों में इसके प्रमाण हैं.. 

भगवान ही हमारे सर्वस्व हैं ..यह संसार माया का बना है.. दुखालय है.. हम परमानंद चाहते हैं जो भगवान स्वयम हैं.. वो आनंद सिंधु हैं.. हम आनंद के अंश हैं भगवान के अंश हैं ..

रसो वै सः। रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति। ( तैत्तिरीयोपनिषत् २-७-२ )

भगवान रस स्वरूप हैं, सच्चिदानंद विग्रह हैं। जब हम इस रस को, इस आनंद को प्राप्त कर लेते हैं तो स्वयं आनन्दमय हो जाते हैं. ।

चिन्मात्रं श्रीहरेरंशं सूक्ष्ममक्षरमव्ययम् ।  कृष्णाधीनमिति प्राहुर्जीवं ज्ञानगुणाश्रयम् ॥ ( वेद )

ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन:। ( गीता 15-7 )

ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन अमल सहज सुख राशी। ( रामायण )

हम ईश्वर के अनादि अंश है.. शास्त्र प्रमाण हैं.. ‘मैं’ शरीर, इन्द्रिय, मन आदि नहीं है । अतएव हमारा असली सुख ईश्वरीय है।

इस अंधकार रूपी संसार  में वस्तु, व्यक्ति, मान सम्मान की चाह बनाकर भटकते भटकते हमें अनंत जन्म बीत गए.. किस योनि में नहीं गए? .. कौन सा दुख नहीं पाया? .. संसार के सुख दुख मिश्रित हैं..सब स्वार्थ से जुड़े हैं, अपूर्ण हैं, स्वार्थ खत्म, प्यार खत्म.. हमारा असली स्वार्थ.. दिव्य स्वार्थ.. पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान से है..उनको किसी से कुछ नहीं चाहिए.. वो अनंत हैं.. उनका सब कुछ अनन्त है..दिव्य है.. वो केवल देना देना जानते हैं.. वो हमारे अपने से भी अपने हैं.. आत्मा की आत्मा हैं.. सबका श्रोत हैं.. वात्सल्य सागर हैं, कृपा सिंधु हैं, दीन बन्धु हैं, पतित पावन हैं, निर्बल के बल हैं!

सच्चे आंसुओ को वो सह नहीं पाते.. पिघल जाते हैं.. वो हमसे कोई साधना की अपेक्षा नहीं रखते.. बस हम उनको अपना मानकर पुकारें, अपनी दयनीय स्थिति को जानकर, अपने को पतित मानकर, निर्बल होकर.. जैसे एक तुरंत का पैदा हुआ बच्चा रो देता है.. वो तो माँ को भी नहीं जानता.. पहचानता.. फिर माँ उसका सब कुछ करती है.. और हमारी असली माँ सर्वज्ञ है, वो हमे एक टक देखती रहती है पर हम उसे भूले हुए हैं.. बस हमारे पुकारने भर की देर है.. ।

हमारी दुर्दशा असहनीय है, जन्म मरण का दुख.. बीमारी का दुख.. बुढ़ापे का दुख.. शरीर रखने का दुख.. संसार में संघर्ष का दुख.. घोर मानसिक दुखों से हम घिरे हैं.. काम की जलन, क्रोध की जलन, गलतियों की जलन.. अनंत जन्मों की तो छोड़िए, इसी जन्म में ही हमने कितने दुख पाएं, जिसने कुछ भी संघर्ष किया है उसने अपनी कमियों को जाना है, हम कितने असहाय हैं, अपूर्ण है.. देखा जाए तो हम कुछ भी नहीं.. एक पल के जीवन का भरोसा नहीं..कब क्या आपदा आ जाए.. कब मृत्यु आ जाये.. पर हमारा अहंकार इतना बड़ा है कि हम अपनी स्थिति पर विचार ही नहीं करते.. हमें करने का बल है.. कर कर के अनन्त जन्म बीत गए.. क्या मिला? और कर्म बंधन में फंसते गए!

यह संसार बड़ी युक्ति से बनाया गया है.. जिससे हम यह जाने की ये हमारा नहीं हैं.. यहा कुछ हमारा नहीं है.. कोई हमारा नहीं है.. हमारा असली घर भगवान का लोक है..हमारे असली ज़न भगवान के ज़न हैं.. हमारे सारे नाते भगवान से हैं.. वो अनन्त जन्मों से हमारी राह देख रहे हैं कि हम कब यह जाने, कब यह माने और उनको पुकारें.. बस फिर देरी नहीं.. भगवान को पाने के लिय सच्चे आँसुओं से बढ़कर कोई साधन नहीं.. अपनेपन के आंसू, दीनता के आँसू कह्ते हैं कि आपके बिना “मैं” कुछ भी नहीं.. और प्रेम का असली स्वरूप भी यही है.. प्रेमी बिना प्रेमास्पद के कुछ भी नहीं.. भगवान हमसे अनंत प्रेम करते हैं, यह संसार चला रहे हैं हमारे लिए सृष्टि की कभी हम जागे, कभी हम जाने, उनको अपना माने, और अपना कल्याण करें.. पर हम भी इतने ढीठ हैं कि अन्त जन्म हो गए.. अपनी बुद्धि का बल.. अपनी शक्ति का बल का मिथ्या अभिमान लेकर चौरासी लाख योनियों में जुते चप्पल खा रहें हैं.. सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं.. प्रेम में हारकर ही जीत है.. भगवान अपने को कुछ नहीं मानते.. भक्त के आगे हारने को तैयार रहते हैं.. पर अभिमान उनको स्वीकार नहीं क्यों कि वो हमें यह समझाना चाहते हैं कि हम अपने से कुछ नहीं पर प्रेम में.. दूसरे के साथ सब कुछ हैं.. यहि प्रेम है, शरणागति है, आश्रय है, दीनता है और बिना आसुओं के यह परिपक्व नहीं होता।

तो फिर कैसे रोयें? आँसू कैसे आयें?  हम जब यह समझें कि बिना प्रभु कृपा के हम माया से, इस अंधकार से कभी नहीं उबर सकते.. हमारे अनन्त पाप हैं अनन्त जन्मों के.. हम अपने में सीमित हैं अगर हम अनंत काल तक भी साधना करें तब भी अशुद्ध ही रहेंगे.. केवल जो अनंत है, नित्य शुद्ध तत्त्व है.. परम पवित्र है.. वो ही अपनी कृपा से हमे उबार सकता है और कोई रास्ता नहीं। यह आँसू ही एक माध्यम हैं उन्हें बताने के लिए हम उनके भरोसे हैं जैसे एक बालक माँ के भरोसे होता है..अहम ही अहंकार है.. जहाँ अहम वहां अपनापन कहाँ? प्रेम में अपना बल रखना दाग है.. प्रेम ही प्रेरणा है.. प्रेम ही बल है.. उनका ही सहारा हो वही प्रेम है .. उनके प्रेम पर हमें पूर्ण विश्वास हो .. किरण सूर्य से प्रथक कुछ भी नहीं, अंधकार में खोई एक लाचार बेचार अस्तित्व है.. सूर्य का संबन्ध ज्ञान, उसका प्रेम, उसका आश्रय अंधकार मिटा सकता है और जो अपना है उससे मदद मांगने में क्या शर्म.. ये तो हमारा हक है.. वास्तविकता तो यह है कि भगवान का जब हम आश्रय नहीं लेना चाहते तो भगवान सोचते हैं यह मुझे अपना नहीं मानता मैं सर्व शक्तिमान हूँ.. मेरे इशारे मात से इसका अंधकार मीट जाएगा.. मुझे पा लेगा मेरा सब कुछ इसका हो जाएगा.. अनन्त कोट ब्रह्मांडो के राजा का बेटा भिखारियों की तरह जी रा है.. और उनकी शक्ति माया से हम पार नहीं पा सकते.. इस माया में भगवान के बराबर शक्ति है.. भगवान का आश्रय लिय बिना, उनसे अपनेपन के बिना, उनकी भक्ति के बिना त्रिकाल में किसी योगी, ज्ञानी, तपस्वी का कल्याण असंभव है, वही भक्ति से भक्त सहज ही भगवान को पा लेता है..

शुद्धयति हि नान्तरात्मा कृष्णपदाम्भोज भक्तिमृते।
(प्रबोध सुधाकर ~ आदि जगद्गुरु शंकराचार्य)

“भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों की भक्ति में लीन हुए बिना मन शुद्ध नहीं होगा”

दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥ ( भगवद्गीता 7-14॥)

प्रकति के तीन गुणों (सात्विक, राजस, तमस) से युक्त मेरी दैवीय शक्ति माया से पार पाना अत्यंत कठिन है किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे इसे सरलता से पार कर जाते हैं।

यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्व, यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै । तं ह देवमात्मबुद्धिप्रकाशं, मुमुक्षुर्वै शरणमहं प्रपद्ये ॥ ( यजुर्वेद श्वेताश्वतरोपनिषत् ६-१८ )

जो सृष्टि के पूर्व ‘सृष्टिकर्ता ब्रह्मा’ का विधान करता है तथा जो वेदों को उन्हें (ब्रह्मा को) प्रदान करता है, वो भगवान (देव) जो ‘आत्मा’ तथा ‘बुद्धि’ प्रकाशित कर रहा है, मैं कल्याण की कामना से उसकी शरण को जाता हूँ।

सो दासी रघुबीर कै समुझें मिथ्या सोपि। छूट न राम कृपा बिनु नाथ कहउँ पद रोपि ॥ (रामायण 71 ख)

वह माया श्री रघुवीर की शक्ति है, उसको मिथ्या ना समझो, उसमे भगवान के बराबर बल है, वह श्री रामजी की कृपा के बिना छूटती नहीं। हे नाथ! यह मैं प्रतिज्ञा करके कहता हूँ॥

हम असहाय हैं.. अनंत जन्मों से माया के आधीन होने के कारण हम अनंत पाप कर के बैठे हैं.. हर तरह का पाप हमने किया है.. अनन्त मर्डर किए हैं.. हमें याद नहीं.. हम अनन्त काल तक भी अगर साधना करे तब भी मन शुद्ध नहीं कर सकते.. और कल युग के जीव क्या साधना करेंगे.. जब मन ही बस में नहीं तो क्या ध्यान क्या ज्ञान.. वैसे भी भगवान कोई साधन से नहीं मिलते.. शरणागति से मिलते हैं.. शरणागत होना मतलब अपने बल का कोई आसरा ना हो केबल प्रभु की कृपा का आसरा हो तब बिना किए ही कृपा होती है.. जो साधना सेवा उन्हें करानी है.. भगवान अपनी कृपा से करा लेते हैं हमारा मन शुद्ध कराने के लिए और फिर भगवद्ग दर्शन, प्रेम सब मिल जाता है.. जब तक जीव कर कर के हार नहीं जाता है.. तब तक उसका अहम नहीं टूटता..तब तक वो शरणागत नहीं होता..

जब संसार आसक्त पत्थर दिल इंसान का हृदय भी आँसू देखकर भारी हो जाता है.. पिघल जाता है तो क्या करुणा वरुणालय अनन्त माताओं का वात्सल्य लिए हमारे प्रभु अपने आप को रोक पाएंगे? .. हरगिज नहीं.. हमारे बस रोने की देर हैं..रोने की आदत डाल लो.. जिद्द कर लो रोने की.. लाखँ आँसू बहाने की.. कि जब तो वो नहीं आयेंगे हम रोते जाएंगे.. प्राणों में और आंसुओं में होड़ लग जाएं.. अभी नहीं तो कभी नहिं.. बस अब बहुत हो चुका अब यह जीवन बिना जीवन धन को पाए व्यर्थ है.. मैं अधम, पापी, अहंकारी पापात्मा बेशर्मी में जिए जाँ रहा
हूँ! पाप पे पाप किए जाँ रहा हुं.. जिस पल भी हम भगवान के अलावा कुछ भी सोचते हैं तो राग द्वेष के अलावा क्या सोचेंगे.. क्या करेंगे.. कर्म बंधन में फंसते जाएंगे.. केवल ईश्वर प्रेम ही एक उपाय है.. जिसे आसुओं का सहारा है उसको भगवान अवश्य मिलेंगे, यही वेदों का सार है।

बिन रोये किन पाईया प्रेम पीयारो मीत..

मन कैसे शांत हो? क्या परमानन्द पाना कठिन है? भगवान जल्दी कैसे मिलें?

सबसे सुगम, सरल और सर्वोत्तम साधन – भगवद्ग ज्ञान, प्रेम और शरणागति।

संसार का सुख मायीक है, जड़, नश्वर, क्षणिक, घटमान, दुख मिश्रित एवं अशांति का मूल है। परम सुख परमात्मिक है, दिव्य, शास्वत, प्रति क्षण वर्धमान, नित्य नवीन एवं अनंत है।

संसार का सुख पाना कठिन है, अगर कोई अरबपति बनना चाहे, प्रधानमन्त्री बनना चाहे, हर कोई नहीं कर पाता और पा भी ले तो रख नहीं पाता परंतु परम सुख पाना सरल है, हर कोई पा सकता है और सदा के लिय।

कैसे? जैसे हम जब बीमार होते हैं, बुखार में, दुख में होते हैं तो स्वाभाविक रूप से अपनी माँ को याद करते हैं, अनायास ही मुख से माँ की पुकार होती है, माँ के प्यार की, दुलार की चाह होती है।

वैसे ही जब हम अपनी असली माँ को सच्चे हृदय से “शरणागत” होके पुकारते हैं तो भगवान की कृपा हमें अपने आचल में भर लेती है, अशांत चित में शांति, मन में निर्भयता, निर्लिप्तता और निशोकता आ जाती है, बिना किय ज्ञान, वैराग्य और प्रेम प्रस्फुटित होने लगाता है, मन आनंद में डूबने लगता है।

असली आनंद पाने के लिए केवल चाह चाहिये, प्रबल चाह, भगवान चाह से मिलते हैं, भाव से मिलते हैं, बिना किए मिलते हैं, निर्बल को मिलते हैं, शरणागत को मिलते हैं, प्रेम से मिलते हैं, और प्रेम करना सब कोई जानता है।

किरन का संबंध सूर्य से है, संसार और शरीर के मोह रूपी अंधकार से नहीं। हम पुकारे कि “हे प्रभु, हम आपके हैं पर करने पर भी आपसे प्रेम नहीं होता, ध्यान नहीं होता, मन अज्ञान से भरा है, अशांत हैं, अनंत जन्मों की बिगड़ी मेरे बनाय नहीं बनेगी, अब बस आपका ही सहारा है!

केवल संसार में ड्यूटी करके भगवान की कृपा चाहने से सबकुछ मिल जाता है। इससे सरल कुछ नहीं, केवल भगवान की कृपा पर विश्वास हो, उनसे अपनापन हो, ना हो तो उनसे प्राथना करें, आप केवल उनके हो यह समझ बैठ जाएगी। तब अनन्त जन्मों की बिगड़ी कुछ समय में बन जाएगी।

और अगर हम सोचे यह बहुत कठिन है तो हमको अपना बल है, सर्व समर्थ भगवान को हम अपना नहीं मानते, हम को लगता है करने से कृपा मिलती है, तो फिर जब हम कर कर के थक जाएगें, मर मर के मर जाएगें, तब कभी किसी जन्म में निर्बल होके भगवान को पुकारेंगे।

तो हम अभी क्यों ना पुकारें, उन्हें अपना मान के? बच्चा माँ की गोदी के लिए सदा अधिकारी है, माँ उसके गुण अवगुण नहीं देखती, बस उसे माँ की प्रबल चाह हो तो भगवान तुरंत गोदी में उठा लेंगे, अपना सब कुछ दे देंगे।

बिगरी जन्म अनेक की अबहीं सुधरे आज। होहि राम कौ नाम भजु तुलसी तजि कुसमाज ।। (तुलसीदास, दोहावली २२)