You are sleeping, Death is forthcoming! तू सोवत कछु जानत नाहिं, काल लगायो घात।

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्‌।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय॥
~ श्वेताश्वतर उपनिषद 3.8

उस परम पुरुष को जानो जो सूर्य के समान देदीप्यमान है और समस्त अन्धकार से परे है। जो उसे अनुभूति द्वारा जान जाता है वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है। जन्म-मरण के चक्र से छुटकारे का कोई अन्य मार्ग नहीं है।

Realize the Great Being who shines effulgent like the sun beyond all darkness. One passes beyond death only on realizing Him. There is no other way of escape from the circle of births and deaths.