You get what you give! आप जो बोएंगे वही पाएंगे

The kindness you use while talking to others, God will use the same kindness with you too. The way you judge others, He will judge you in the same way. The way you forgive the mistakes of others, He will forgive your mistakes too. The way you seek Him with love and devotion, He will appear to you in the same way.

दूसरों से बात करते समय आप जिस नम्रता का इस्तेमाल करते हैं, वही नम्रता भगवान आपके साथ भी इस्तेमाल करेंगे। जिस तरह से आप दूसरों का निर्णय करते हैं, उसी तरह से वह आपका भी निर्णय करेंगे। जैसे आप दूसरों की गलतियों को माफ करते हैं, वैसे ही वह आपकी गलतियों को भी माफ करते हैं। जिस तरह से आप उन्हें प्रेम और भाव से खोजते हैं, उसी तरह से वह आपके सामने प्रकट होंगे।

~ Saints Sayings संत वचन
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प्रारब्ध और पुरुषार्थ!

हम अज्ञानता वश धन-संपत्ति, भोग-कामना, मान-सम्मान आदि की लोलुपता और चिंता में अनवरत अनावश्यक श्रम और समय देकर अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ कर देते हैं। जो प्रारब्ध से निर्धारित है वो अवश्य मिलेगा – जो हमने पूर्व जन्म में पुण्य किए हैं – दान, दया, त्याग, सेवा आदि से निर्धारित और कभी कभी इसी जन्म में किय विशेष पुण्य कर्मों पे आधारित, अगर कोई प्रबल प्रारब्ध बंधन न हो। संयोग से अधिक कुछ जो आ जाएगा वो चला जाएगा।

प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यो देवोऽपि तं लङ्घयितुं न शक्तः।
तस्मान्न शोचामि न विस्मयो मे यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम् ॥
~ पंचतंत्र मित्रसमप्राप्ति 112

अर्थ: मनुष्य को जो प्राप्त होना होता है, उसका उल्लंघन करने में देवता भी समर्थ नहीं हैं इसलिए मुझे न आश्चर्य है और न शोक क्योंकि जो मेरा है वह किसी दूसरे का नहीं है।

प्रारब्ध से परिस्थिति वश जो दुख आता है वो सीमित होता है। हम ज्यादातर दुख अपनी अज्ञानता, आसक्ति और मूर्खता वश पाते हैं, अपने और संसार के सही सही स्वरूप का ज्ञान ना होने के कारण।

सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥
~ रामचरितमानस

आयुः कर्मं च वितं च विद्यानिधन मेवI
पंञ्चैतान्यायं सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनःII
~ नीतिसार

अर्थ (धन-सम्पत्ति) और भोग (कामनाओं की पूर्ति) में प्रारब्ध की प्राथमिकता है और धर्म (कर्तव्य-कर्म, सही-गलत ) और मोक्ष ( मुक्ति और भगवद्गप्राप्ति) में पुरूषार्थ की। इसलिए अनावश्यक अनवरत श्रम ना करके धार्मिक जीवन के साथ भगवद् प्रवृत्त चिंतन में समय देना चाहिए।

प्रारब्ध पहले रचा पीछे रचा शरीर,
तुलसी चिन्ता क्यों करे भज ले श्री रघुवीर।
~ तुलसी दोहावली

मुरदे को हरि देत है, कपड़ा लकड़ी आग।
जीवित नर चिन्ता करे, उनका बड़ा अभाग।।
~ संत कबीर दास जी

घर नहीं ग्रहस्थी नहीं, नहीं रुपैयो रोक।
खाने बैठे रामदास, आन मिलै सब थोक।।
~  संत वाणी

समुद्र-मथने लेभे हरिः, लक्ष्मीं हरो विषम्।
भाग्यं फलति सर्वत्र ,न च विद्या न पौरुषम्॥
~ नीतिविवेक

अगर हम कर्म रहस्य समझ ले तो चिंता मुक्त हो जाए, सुख में हर्षित ना हो और दुख में शोकित ना हों, नए कर्म बंधन में ना फंसे, समता के साथ अपना कर्तव्य पालन करते हुए प्रभु प्रेम में मगन रहें।

जीव का परम चरम लक्ष्य भगवान को पाना है ना कि संसार में समय गवाना है। जिस आनंद की हमारी चाह है वह जड़ नश्वर संसार में नहीं अपितु भगवान में है क्योंकि भगवान ही असली आनंद हैं!

आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्।
~ तैत्तिरीय उपनिषद – भृगु वल्ली – 3-6-1

भगवान ने प्रारब्ध हमे चिंता से मुक्त करने के लिय बनाया है और पुरुषार्थ अपना कर्तव्य कर्म करते हुए उन्हें पाने के लिए।

~ राधाकृष्ण दास

प्रश्न: आध्यात्मिक जगत में पाप पुण्य की क्या परिभाषा है?

#उत्तर: यह पाप पुण्य की जो परिभाषा है वहाँ बुद्धि नहीं पहुँच सकती मनुष्य की। वही कार्य – छोटा पाप, वही कार्य – बड़ा पाप, वही कार्य – और बड़ा पाप।……….तुमने एक चींटी को मार दिया, मच्छर को मार दिया, मक्खी को मार दिया, पाप है ना? हाँ, पाप है। और एक ने गाय मार दिया। हाँ, वह भी पाप है। किसी ने एक आदमी मार दिया। यह सब murder है। चींटी के मारने का पाप छोटा, गाय को मारने का पाप बड़ा, मनुष्य को मारने का पाप उससे बड़ा। फिर जो धर्मात्मा मनुष्य हो उसको मारने का पाप उससे बड़ा। फिर जो विरक्त महापुरुष हो उसको मारने का और बड़ा पाप, फिर जो ज्ञानी हो इसका और बड़ा पाप, फिर जो भक्त हो वह सब से बड़ा नामापराध। अब काम तो सब एक ही है।

हमने तुम्हारी बुराई की। तुम बुरे थे और बुराई की, फिर भी गलत है, लेकिन मामूली पाप। फिर अच्छा है, उसकी बुराई की – बड़ा पाप। एक धर्मात्मा की बुराई की- और बड़ा पाप। एक महापुरुष की  बुराई की – नामापराध, सबसे बड़ा पाप।

तो यह पाप की परिभाषा personality के अनुसार होती है, इसलिए उसको कोई जान नहीं सकता मनुष्य। कहो, किसकी क्या अवस्था है भीतर की, कौन जानेगा? ये सब भगवान की government के काम हैं। वही हिसाब लगाते हैं, वही लगा सकते हैं। एक हल्का सा idea जरूर मनुष्य को रखना चाहिए वेदों के अनुसार कि हम अपराध जिसके प्रति करते हैं उसकी personality के अनुसार limit मानी जाएगी। संसार में भी यह होता है। किसी के नौकर को झापड़ लगा दिया आपने तो मालिक कहता है – “तुमने क्यों मारा हमारे नौकर को?”, उसको डाँट-वाँट दिया, हो गया बस। और उसके लड़के को मार दिया झापड़, अब वह बड़े जोर से आ रहा है तुमको मारने के लिए। उसकी बीवी को मार दिया एक थप्पड़, और serious case हो गई। अब देखो थप्पड़ तो वही है लेकिन personality के अनुसार इतना बड़ा हो जाता है कि murder हो जाता है एक थप्पड़ के पीछे – “तुम्हारी यह हिम्मत!”

एक शादी हो करके बहु आई। तुमने उसके कंधे पे हाथ रख दिया – “बत्तमीज!” अब वही बुढ़िया हो गई, अब तुम चिपटाओ भी, कुछ नहीं कहेगी वह। “हाँ, बेटा ठीक है।” शरीर वही है, तुम्हारा शरीर वही, उसका शरीर वही, लेकिन कितना परिवर्तन हो गया।

………Court में वकालत जब होती है तो कानून को कानून काटता है।
तुम्हारी गोली से यह मरा?
हाँ साहब, हमारी गोली से मरा।
फिर तो फाँसी होनी चाहिए तुमको !
नहीं साहब।
क्यों ?
हम पक्षी को गोली मार रहे थे, यह पेड़ पे बैठा था, लग गई इसको गोली, मैं क्या करूँ ? हमारी गोली से मरा, यह सही है, लेकिन हमने मारा नहीं इसको। हम तो पक्षी का शिकार कर रहे थे, अब यह पेड़ पे क्यों बैठा था यह जाने।

बहुत बारीक बातें हैं। धर्म का विषय जो है अम्बार है। बहुत बड़ा इसका detail है। इसकी knowledge भी नहीं प्राप्त कर सकता सौ वर्ष भी कोई पढ़े, पालन करना तो बहुत दूर की बात है। केवल भक्ति एक ऐसा साधन है कि सब पापों को भी क्षमा कर दे, अंतःकरण भी शुद्ध कर दे, भगवत्प्राप्ति भी करा दे, सारा काम बन जाए। बस केवल दो को पकड़े रहो – गुरु और भगवान। बाकी सब दिमाग से निकाल दो। क्या धर्म, क्या अधर्म, उसकी theory उसका सिद्धांत समझना-जानना, इस चक्कर में पड़ा, तो गया।

#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज