#उत्तर: यह पाप पुण्य की जो परिभाषा है वहाँ बुद्धि नहीं पहुँच सकती मनुष्य की। वही कार्य – छोटा पाप, वही कार्य – बड़ा पाप, वही कार्य – और बड़ा पाप।……….तुमने एक चींटी को मार दिया, मच्छर को मार दिया, मक्खी को मार दिया, पाप है ना? हाँ, पाप है। और एक ने गाय मार दिया। हाँ, वह भी पाप है। किसी ने एक आदमी मार दिया। यह सब murder है। चींटी के मारने का पाप छोटा, गाय को मारने का पाप बड़ा, मनुष्य को मारने का पाप उससे बड़ा। फिर जो धर्मात्मा मनुष्य हो उसको मारने का पाप उससे बड़ा। फिर जो विरक्त महापुरुष हो उसको मारने का और बड़ा पाप, फिर जो ज्ञानी हो इसका और बड़ा पाप, फिर जो भक्त हो वह सब से बड़ा नामापराध। अब काम तो सब एक ही है।
हमने तुम्हारी बुराई की। तुम बुरे थे और बुराई की, फिर भी गलत है, लेकिन मामूली पाप। फिर अच्छा है, उसकी बुराई की – बड़ा पाप। एक धर्मात्मा की बुराई की- और बड़ा पाप। एक महापुरुष की बुराई की – नामापराध, सबसे बड़ा पाप।
तो यह पाप की परिभाषा personality के अनुसार होती है, इसलिए उसको कोई जान नहीं सकता मनुष्य। कहो, किसकी क्या अवस्था है भीतर की, कौन जानेगा? ये सब भगवान की government के काम हैं। वही हिसाब लगाते हैं, वही लगा सकते हैं। एक हल्का सा idea जरूर मनुष्य को रखना चाहिए वेदों के अनुसार कि हम अपराध जिसके प्रति करते हैं उसकी personality के अनुसार limit मानी जाएगी। संसार में भी यह होता है। किसी के नौकर को झापड़ लगा दिया आपने तो मालिक कहता है – “तुमने क्यों मारा हमारे नौकर को?”, उसको डाँट-वाँट दिया, हो गया बस। और उसके लड़के को मार दिया झापड़, अब वह बड़े जोर से आ रहा है तुमको मारने के लिए। उसकी बीवी को मार दिया एक थप्पड़, और serious case हो गई। अब देखो थप्पड़ तो वही है लेकिन personality के अनुसार इतना बड़ा हो जाता है कि murder हो जाता है एक थप्पड़ के पीछे – “तुम्हारी यह हिम्मत!”
एक शादी हो करके बहु आई। तुमने उसके कंधे पे हाथ रख दिया – “बत्तमीज!” अब वही बुढ़िया हो गई, अब तुम चिपटाओ भी, कुछ नहीं कहेगी वह। “हाँ, बेटा ठीक है।” शरीर वही है, तुम्हारा शरीर वही, उसका शरीर वही, लेकिन कितना परिवर्तन हो गया।
………Court में वकालत जब होती है तो कानून को कानून काटता है।
तुम्हारी गोली से यह मरा?
हाँ साहब, हमारी गोली से मरा।
फिर तो फाँसी होनी चाहिए तुमको !
नहीं साहब।
क्यों ?
हम पक्षी को गोली मार रहे थे, यह पेड़ पे बैठा था, लग गई इसको गोली, मैं क्या करूँ ? हमारी गोली से मरा, यह सही है, लेकिन हमने मारा नहीं इसको। हम तो पक्षी का शिकार कर रहे थे, अब यह पेड़ पे क्यों बैठा था यह जाने।
बहुत बारीक बातें हैं। धर्म का विषय जो है अम्बार है। बहुत बड़ा इसका detail है। इसकी knowledge भी नहीं प्राप्त कर सकता सौ वर्ष भी कोई पढ़े, पालन करना तो बहुत दूर की बात है। केवल भक्ति एक ऐसा साधन है कि सब पापों को भी क्षमा कर दे, अंतःकरण भी शुद्ध कर दे, भगवत्प्राप्ति भी करा दे, सारा काम बन जाए। बस केवल दो को पकड़े रहो – गुरु और भगवान। बाकी सब दिमाग से निकाल दो। क्या धर्म, क्या अधर्म, उसकी theory उसका सिद्धांत समझना-जानना, इस चक्कर में पड़ा, तो गया।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज